Karl Marx:कार्ल मार्क्स का जन्म पर्शिया के लाइन प्रांत के टियर नगर में 5 मई, 1818 को हुआ था। मार्क्स के पिता एक वकील थे। मार्क्स की प्रारंभिक शिक्षा एक स्थानीय स्कूल जिमनेजियम मैं पूरी हुई। मार्क्स ने बोन विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा प्राप्त की। बर्लिन विश्वविद्यालय से दर्शन एवं इतिहास का अध्ययन किया जेना विश्वविद्यालय से उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
कार्ल मार्क्स के विचार
Karl Marx’s theory:कार्ल मार्क्स हीगेल के विचारों से प्रभावित थे। कार्ल मार्क्स ने “होली फैमिली” नामक एक पुस्तक प्रकाशित करवाई जिसमें उन्होंने सर्वहारा वर्ग और भौतिक दर्शन की सैद्धांतिक विचारधारा पर सर्वाधिक प्रकाश डाला। कार्ल मार्क्स ने अपने साम्यवादी घोषणापत्र में पूंजीवाद को समाप्त करने का संकल्प लिया था। कार्ल मार्क्स ने कहा था कि उत्तराधिकार की प्रथा का अंत किया जाना चाहिए।
Thoughts of karl marx:कार्ल मार्क्स का कहना था कि आर्थिक एवं सामाजिक समानता हेतु शांतिपूर्वक क्रांति की जानी चाहिए। अगर इससे बदलाव ना आए तो शस्त्र क्रांति की जानी चाहिए। कार्ल मार्क्स का प्रमुख उद्देश्य वर्ग विहीन समाज की स्थापना करना था वर्ष 1867 मैं कार्ल मार्क्स का प्रथम विश्वविद्यालय ग्रंथ “दस कैपिटल” प्रकाशित हुआ जिसके द्वारा संपूर्ण विश्व में उन्हें प्रसिद्धि प्राप्त हुई
Thoughts of karl marx:कार्ल मार्क्स की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम ‘द पॉवर्टी ऑफ फिलॉस्फी‘ हैं वर्ष 1883 में कार्ल मार्क्स की मृत्यु हो गई।
Thoughts of karl marx:कार्ल मार्क्स महिलाओं के अधिकारों को महत्वपूर्ण मानते थे। मार्क्स का कहना था कि कोई भी व्यक्ति जो इतिहास की थोड़ी सी भी जानकारी रखता है वह यह जानता है कि महान सामाजिक बदलाव बिना महिलाओं का उत्थान किया बिना संभव है। महिलाओं की सामाजिक स्थिति को देखकर किसी समाज की सामाजिक प्रगति मापी जाती है
Thoughts of karl marx:मार्क्स ने विश्व को संघर्ष करने की प्रेरणा दी मार्क्स ने कहा दुनिया के सारे मजदूरों एक हो जाओ तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है खोने को शिवाय अपनी जंजीरों के। स्नेह एक ऐसे समतामूलक समाज की संकल्पना की जिसमे स्त्री-पुरुष, अमीर-गरीब, काले-गोरे जैसे बिना किसी भेदभाव के समानता स्थापित हो सके। कार्ल मार्क्स समाजवादी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लोकतंत्र को महत्व देते थे। कार्ल मार्क्स ने कहा लोकतंत्र समाजवाद का रास्ता है। तथा कार्ल मार्क्स ने मानवता को धर्म से ऊपर रखा। कार्ल मार्क्स ने धर्म की आलोचना करते हुए उसे अफीम की संज्ञा दी।